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Are Indian Citizens Being Disenfranchised in BJP Ruled Assam?

Newsclick Team |
The case of Md Bakkar Ali, a resident of Assam who stands on the verge of being disenfranchised

The National Register of Citizens (NRC) was undertaken under the supervision of the Supreme Court to enforce the Assam Accord. The Court has directed the entire process be completed by May 31, and the final corrections to be done by June 30.

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The rough transcript has been produced below. 

हमें नोटिस मिला था जिसके बाद हमने हाईकोर्ट में अपील की।

मेरा नाम बक्कर अली है, 2015 मुझे, मेरे भाई, और मेरी माँ के नाम एक नोटिस आया था।

हमारा ज़िला बोगंई गाँव पड़ता है, हम तीनों ज़िला अदालत गए, जहाँ हमारा फैसला भी हो गया है।

कोर्ट के इस फैसले के अनुसार मेरे भाई और मेरी माँ भारतीय हैं। जबकि मैं 10 साल तक वोट नहीं दे सकता, मेरा नाम वोटर लिस्ट से 10 साल के लिए हटा दिया गया है।मैं असम के स्कूल में सह-अध्यापक हूँ। इस फैसले के बाद मैंने हाइकोर्ट में अपील की थी। जब मेरा बड़ा भाई भारतीय है तो मैं कैसे इस देश का नागरिक नहीं हूँ। एक अध्यापक के नाते मुझे बहुत दुख होता है कि मेरा नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है। हाईकोर्ट ने हमारा केस वापस निचली अदालत में पुन:विचार के लिए भेज दिया था, जहाँ अब फैसला आया कि हम तीनों ही विदेशी हैं। इसी के कारण मैं पिछले एक महीने से अपने घर नहीं जा पाया हूँ, मैं कभी कहीं तो कभी कहीं रहकर गुज़ारा कर रहा हूँ। मुझसे रजिस्टरारऑफिस में पूछा गया की मैं बांगलादेश में कहाँरहता था?फिर बिना मेरी सहमति के उन्होंनेमेरा पता बांगलादेश का लिख दिया, मुसे कहा गया कि एस.पी. ऑफिस में जाकर मैंयही पता बताऊँ जिसके बाद मेरा नाम मतदाता सूची में डाल दिया जाएगा। मेरे जन्म के साल को भी बदलकर 1970 कर दिया गया, ताकि यह साबित किया जा सके कि मैं बांगलादेश से आया हूँ, जबकि मेरे स्कूल प्रमाण पत्र में मेरा जन्म साल 1985 है। उनका कहना है कि असल जन्म साल से मेरा नाम मतदाता सूची में शामिल नहीं किया सकता। मैं इस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर नहीं करना चाहता था, इसी कारण से मैं तीन दिन ऑफिस से लौट आया, मगर मुझसे कहा गया कि अगर मैं हस्ताक्षर नहीं करता हूँ तो मुझे पुलिस गिरफ्तार कर लेगी।

बक्कल जी क्या अब इस दस्तावेज़ का कोई मूल्य रह गया है?क्योंकि अब तो आपको अदालत ने विदेशी घोषित कर दिया है।

नहीं अब इस दस्तावेज़ का कोई मूल्य नहीं रह गया है। यह मेरे स्कूल के प्रमाण पत्र हैं। मेरा दादा का नाम मतदाता सूची में 1966,1979,1997,2005 है। मुझे पहला नोटिस 2015 मेंमिला था। पुलिस के डर के कारण मैं अब स्कूल में पढ़ाने भी नहीं जा सकता। मेरे भाई और मेरी माँ भी छुप-छुप के रहने को मजबूर हैं

मैंने हाइकोर्ट में भी अपील की लेकिन फिलहाल हाईकोर्ट भी बंद है और 10 तारीक तक खुलेगा।

अभी आपने बक्कर अली को सुना, इनका बड़ा अजीब-सा केस है, ये एक जवान आदमी है। 2008 से पहले ये मतदान करते थे, 2008 में इन्हेंऔर इनके परिवार को एन.आर.सी. ने अपनी नागरिकता साबित करने के लिए नोटिस भेजा था, ये लोग वहाँगए और इन्होंनेकोर्ट में भी अपील की, सारे दस्तावेज़ भी दिखाए। कोर्ट ने इनके बड़े भाई और माँ को भारतीय माना और उनके सारे नागरिक अधिकार उन्हेंवापस मिल गएI लेकिन बक्कर को भारतीय नागरिक न मानते हुए, 10 साल तक इनके सारे अधिकार वापस ले लिए गए। ये अब किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं ले सकते, न ही मतदान कर सकते हैं। ये हाईकोर्ट गए जहाँ से इनका केस निचली अदालत में पुनविचार के लिए भेज दिया गया। निचली अदालत ने बक्कर समेत इनके भाई और माँ को भी विदेशी घोषित कर दिया। बक्कर असम के सरकारी स्कूल में अध्यापक थे मगर अब इन्हेंऔर इनके परिवार वालों को डर के सायेमें रहना पड़ रहा है। इनका जन्म सन 1985 में हुआ था, लेकिन क्योंकि प्रशासन को यह साबित करना था कि ये बागंलादेश से आए हैंतो इनके जन्म साल को बदलकर 1970 कर दिया गया। क्योंकि उस दौरान जो बंग्लादेशी भारत आए थे उन्हें भारत की नागरिकता दी जाती है। इनके अनुसार एस.पी. ऑफिस के द्वारा इन्हेंधमकाया गया और इनसे एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर कराया गया, जिसमें इनके जन्म के साल को पीछे कर के 1970 कर दिया गया और इनका पता बांग्लादेशका दिखाया गया। बक्कर ने इस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने से तीन बार इंकारकिया मगर अंत में उन्हेंदबाव में आकर हस्ताक्षर करना पड़ा।

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